समास: Study Notes of समास for CTET, TET, Samvida, SI, Vyapam

समास: Study Notes of समास for CTET, TET, Samvida, SI, Vyapam

समास: Study Notes of समास for CTET, TET, Samvida, SI, Vyapam

प्रिय पाठकों,
टी ई टी एवं अन्य परीक्षाओं में  व्याकरण भाग से विभिन्न प्रश्न पूछे जाते है ये प्रश्न आप  बहुत आसानी से हल कर सकते है  यदि आप हिंदी भाषा से सम्बंधित नियमों का अध्ययन ध्यानपूर्वक करें । यहां "समास: Study Notes of समास for CTET, TET, Samvida, SI, Vyapam"  पर बहुत ही साधारण भाषा में विषय को समझाया गया है तथा विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से भी अवधारणा को स्पष्ट किया गया है प्रस्तुत नोट्स को पढ़ने के बाद आप समास से सम्बंधित विभिन्न प्रश्नों को आसानी से हल कर पाएंगे ।

समास

समास का तात्पर्य है ‘संक्षिप्तीकरण’। दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं। जैसे - ‘रसोई के लिए घर’ इसे हम ‘रसोईघर’ भी कह सकते हैं। संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं में समास का बहुतायत में प्रयोग होता है। जर्मन आदि भाषाओं में भी समास का बहुत अधिक प्रयोग होता है।


परिभाषाएँ

सामासिक शब्द:-
समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) लुप्त हो जाते हैं। जैसे-राजपुत्र।
समास-विग्रह:-
सामासिक शब्दों के बीच के संबंध को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है। जैसे-राजपुत्र-राजा का पुत्र।
पूर्वपद और उत्तरपद:-
समास में दो पद (शब्द) होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं। जैसे-गंगाजल। इसमें गंगा पूर्वपद और जल उत्तरपद है।

संस्कृत में समासों का बहुत प्रयोग होता है। अन्य भारतीय भाषाओं में भी समास उपयोग होता है। समास के छः भेद होते हैं:
  1. अव्ययीभाव
  2. तत्पुरुष
  3. द्विगु
  4. द्वन्द्व
  5. बहुव्रीहि
  6. कर्मधारय
1.अव्ययीभाव समास:-
जिस समास का पहला पद (पूर्व पद) प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे - यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु कर) न् इनमें यथा और आ अव्यय हैं।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण:
आजीवन - जीवन-भर
यथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसार
यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
यथाविधि - विधि के अनुसार
यथाक्रम - क्रम के अनुसार
भरपेट- पेट भरकर
हररोज़ - रोज़-रोज़
रातोंरात - रात ही रात में
प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
निडर - डर के बिना
निस्संदेह - संदेह के बिना
प्रतिवर्ष - हर वर्ष
अव्ययीभाव समास की पहचान - इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास लगाने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता। जैसे - ऊपर के समस्त शब्द है।

2.तत्पुरुष समास:- जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - तुलसीदासकृत = तुलसी द्वारा कृत (रचित)
ज्ञातव्य- विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है।
विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद हैं-
  1. कर्म तत्पुरुष (गिरहकट - गिरह को काटने वाला)
  2. करण तत्पुरुष (मनचाहा - मन से चाहा)
  3. संप्रदान तत्पुरुष (रसोईघर - रसोई के लिए घर)
  4. अपादान तत्पुरुष (देशनिकाला - देश से निकाला)
  5. संबंध तत्पुरुष (गंगाजल - गंगा का जल)
  6. अधिकरण तत्पुरुष (नगरवास - नगर में वास)
3.द्विगु समास:- जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है। जैसे - समस्त पद   समास-विग्रह 
  • नवग्रह - नौ ग्रहों का समूह  
  • दोपहर - दो पहरों का समाहार
  • त्रिलोक - तीन लोकों का समाहार
  • चौमासा-  चार मासों का समूह
  • नवरात्र - नौ रात्रियों का समूह
  • शताब्दी- सौ अब्दो (वर्षों) का समूह
  • अठन्नी- आठ आनों का समूह
  • त्रयम्बकेश्वर-   तीन लोकों का ईश्वर


4.द्वन्द्व समास:- जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं लगता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे- समस्त पद   समास-विग्रह
  • पाप-पुण्य - पाप और पुण्य
  • अन्न-जल - अन्न और जल
  • सीता-राम - सीता और राम
  • खरा-खोटा - खरा और खोटा
  • ऊँच-नीच - ऊँच और नीच
  • राधा-कृष्ण-  राधा और कृष्ण
5. बहुव्रीहि समास:- जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे - समस्त पद   समास-विग्रह
  • दशानन-  दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
  • नीलकंठ- नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
  • सुलोचना- सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी
  • पीतांबर- पीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्ण
  • लंबोदर- लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी
  • दुरात्मा- बुरी आत्मा वाला ( दुष्ट)
  • श्वेतांबर -  श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती जी
6.कर्मधारय समास:- जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे - समस्त पद   समास-विग्रह
  • चंद्रमुख- चंद्र जैसा मुख
  • कमलनयन - कमल के समान नयन
  • देहलता-      देह रूपी लता
  • दहीबड़ा-      दही में डूबा बड़ा
  • नीलकमल- नीला कमल
  • पीतांबर-     पीला अंबर (वस्त्र)
  • सज्जन- सत् (अच्छा) जन
  • नरसिंह-      नरों में सिंह के समान
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर:
कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। जैसे - नीलकंठ = नीला कंठ। बहुव्रीहि में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञादि का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है। जैसे - नील+कंठ = नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव।.

संधि और समास में अंतर:

संधि वर्णों में होती है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है। जैसे - देव + आलय = देवालय।
समास दो पदों में होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है। जैसे - माता और पिता = माता-पिता।