प्लूटो को ग्रहों की श्रेणी से क्यों बाहर किया गया?

प्लूटो को ग्रहों की श्रेणी से क्यों बाहर किया गया?

प्लूटो को ग्रहों की श्रेणी से क्यों बाहर किया गया?

खोज कर्ता :    क्लाइड टॉमबॉ
खोज की तिथि :    18 फरवरी 1930
परिक्रमण काल :    247.68 वर्ष
उपग्रह :    5
माध्य त्रिज्या :    1,188 km
आयतन :    7.057×109 km3
द्रव्यमान :    1.303×1022 kg
माध्य घनत्व :    1.854 g/cm3

यम या प्लूटो सौर मण्डल का दुसरा सबसे बड़ा बौना ग्रह है (सबसे बड़ा ऍरिस है)। प्लूटो को कभी सौर मण्डल का सबसे बाहरी ग्रह माना जाता था, लेकिन अब इसे सौर मण्डल के बाहरी काइपर घेरे की सब से बड़ी खगोलीय वस्तु माना जाता है। साल 2006 में ग्रहों की परिभाषा तय होने पर प्लूटो को ग्रहों की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था। बाद में यह चर्चा हुई थी कि प्लूटो फिर से ग्रह बन सकता है। वैज्ञानिकों के एक दल ने प्लूटो को फिर से ग्रह बनाने के लिए ग्रहों की परिभाषा बदलने का प्रस्ताव रखा था। हालांकि काफी शोध के बाद वैज्ञानिकों ने फिर से दावा किया था कि प्लूटो कभी हमारे सौरमंडल का ग्रह नहीं बन सकता। अगर ग्रहों की परिभाषा बदलने का प्रस्ताव को माना जाता तो प्लूटो ग्रह तो बन जाता लेकिन हमारे सौरमंडल में ग्रहों की संख्या 100 से अधिक हो सकती थी। ऐसे में कई धूमकेतु और उपग्रह भी ग्रह बन जाते। वैज्ञानिकों का कहना है कि अब प्लूटो को सौर मण्डल के बाहरी काइपर घेरे की सब से बड़ी खगोलीय वस्तु माना जाना चाहिए।  

प्लूटो को बाहर करने का कारण
प्लूटो को 24 अगस्त 2006 को ग्रहों की श्रेणी से बाहर किया गया था। इसके लिए प्राग में करीब ढाई हजार खगोलविद इकठ्ठे हुए और इस विषय पर उनका मतदान भी हुआ। अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ की इस मीटिंग में सभी के बहुमत से इस पर सहमति बनी और सौरमंडल के ग्रहों शामिल होने के लिए उन्होंने तीन मानक तय किए हैं। 
  1. यह सूर्य की परिक्रमा करता हो।
  2. यह इतना बड़ा ज़रूर हो कि अपने गुरुत्व बल के कारण इसका आकार लगभग गोलाकार हो जाए।
  3. इसमें इतना जोर हो कि ये बाकी पिंडों से अलग अपनी स्वतंत्र कक्षा बना सके। 
तीसरी अपेक्षा पर प्लूटो खरा नहीं उतरता है, क्योंकि सूर्य की परिक्रमा के दौरान इसकी कक्षा नेप्चून की कक्षा से टकराती है। 


किसने और क्यों रखा था प्लूटो का नाम
प्लूटो की खोज 1930 में अमेरिकी वैज्ञानिक क्लाइड डब्यू टॉमबॉग ने की थी। पहले इसे ग्रह मान लिया गया था लेकिन 2006 में वैज्ञानिकों ने इसे ग्रहों की श्रेणी से बाहर कर दिया। प्लूटो का नाम ऑक्सफॉर्ड स्कूल ऑफ लंदन में 11वीं की छात्रा वेनेशिया बर्ने ने रखा था। वैज्ञानिकों ने लोगों से पूछा था कि इस ग्रह का नाम क्या रखा जाए तो इस बच्ची ने इसका नाम प्लूटो सुझाया था। इस बच्ची ने कहा था कि रोम में अंधेरे के देवता को प्लूटो कहते हैं, इस ग्रह पर भी हमेशा अंधेरा रहता है, इसलिए इसका नाम प्लूटो रखा जाए। प्लूटो 248 साल में सूरज का एक चक्कर लगा पाता है।

प्लूटो के वातावरण और उपग्रहों के बारे में
प्लूटो के पांच उपग्रह हैं, इसका सबसे बड़ा उपग्रह शेरन है जो 1978 में खोजा गया था इसके बाद हायडरा और निक्स 2005 में खोजे गए। कर्बेरास 2011 और सीटक्स 2012 में खोजा गया। प्लूटो का वायुमंडल बहुत ज्यादा पतला है जो मीथेन, नाइट्रोजन और कार्बन मोनोऑक्साइड से बना है। जिस समय प्लूटो परिक्रमा करते समय सूर्य से दूर चला जाता है तो इस पर ठंड बढ़ने लगती है और इस पर पाई जाने बाली गैसों का कुछ हिस्सा बर्फ बनकर उसकी सतह पर जम जाता है जिसके कारण प्लूटो का वायुमंडल और भी विरला हो जाता है। इस तरह जब प्लूटो धीरे-धीरे सूर्य के पास आने लगता है तो उन गैसों का कुछ हिस्सा पिघल कर वायुमंडल में फैलने लगता है ।